हजारो में एक है यह भागलपुर का अनोखा अंग्रेजी बच्चा – जानिए पूरी कहानी

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बिहार में एक अनोखे बच्चे का जन्म जिसको देखकर आपको भी होगी हैरानी। इस बच्चे का रंग भूरा और भौहें और बाल सफ़ेद रंग के है। डॉक्टर्स ने भी बच्चे के अनोखे होने की भी वजह बताई। यह बच्चा यूरोपियन देश के बच्चो जैसा दिखने में एक दम सफ़ेद है।

भागलपुर के जवाहर लाल नेहरु अस्पताल में एक महिला ने एक अनोखे बच्चे को जन्म दिया। यहाँ बच्चा दिखने में एक अंग्रेज बच्चे की तरह है। इस बच्चे के जन्म के समय रात में हॉस्पिटल में सीनियर स्टाफ न होने ही वजह से जूनियर डॉक्टर्स के मदद से महिला की सर्जरी की गयी और बच्चे को जन्म दिया गया। जांच के दौरान पता चला कि उसके शरीर में हीमोग्लोबिन मात्र 6 ग्राम है। तत्पश्चात देर रात 12:00 बजे इस अनोखे अंग्रेजी बच्चे का जन्म हुआ। बच्चे का रंग यूरोपीय देशों के बच्चे की तरह बिल्कुल सफेद है।

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डॉक्टर्स ने इस बच्चे के अनोखे होने का कारण बताते हुए कहा की बच्चे का ऐसा रंग उसमे उपस्थित पिगमेंट पर निर्भर करता है। मेलानिन नाम के एक नेचुरल पिग्मेंट पर मानव शरीर का कलर निर्भर करता है। यहाँ पिग्मेंट कम धूप वाले सर्द क्षेत्रों में पैदा होने वाले मानव में कम होता है जिसकी वजह से वहा के लोगो का रंग सफ़ेद होता है। जबकि एशियाई देशों में विपरीत परिस्थिति होती है

अगर भारत में इस तरह के बच्चे का जन्म होतो यहाँ बच्चे में एक प्रकार की कमी मानी जाती है। शरीर में एंजाइम की कमी मेलानिन के उत्पादन को कम करता है। इस प्रकार की स्थिति को ऐक्रोमिया, ऐक्रोमेसिया या ऐक्रोमेटोसिस भी कहा जाता है। शारीरिक त्वचा की इस विपरीत स्थिति में धूप से झुलसने और त्वचा कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।

भारत में इस प्रकार के कुछ ही मामले ही देखने को मिलते हैं। शारीरिक दृष्टि से एक्रोमेसिया पीड़ित बच्चों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उनका मजाक बनाया जाता है। यहाँ तक कि उन्हें डर और हिंसा के नज़रिये से भी देखा जाता है। यह स्थिति बच्चों में मानसिक तनाव का कारण बनती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रकार के बच्चों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। इससे उनकी मानसिक स्थिति पर गहरा असर पड़ता है।

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