संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) इस वक्त भयंकर गर्मी की चपेट में है। इस समय दुबई का तापमान 50 डिग्री तक पहुंच गया हैं और इस समय वहां के लोग प्राकृतिक बारिश का इंतजार नही कर सकतें। ऐसे में कृत्रिम बारिश करवाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। का इंतजार नहीं बारिश और शहर के लोगों ने झमाझम बारिश का आनंद लिया। ज्यादा बारिश के होते वहां येलो अलर्ट जारी किया गया। हालांकि, यह तकनीक अभी भी ट्रायल में है, लेकिन इसकी कामयाबी इसे आगे भी जारी रखने का कारण बन सकता है। हर साल पड़ने वाली भयंकर गर्मी से बचने के लिए यूएई के नेशनल सेंटर ऑफ मेटियोरोलॉजी ने लाखों रूपये का इनवेस्टमेंट करके कृत्रिम बारिश करवाने का उपाय खोज निकाला। क्योंकि, औसत बारिश में वहां हर साल कुछ न कुछ कमी ही दर्ज होती जा रही है।
यूएई ने इस पर 2017 से काम शुरू कर दिया इसकी अगुवाई यूनाइटेड किंग्डम स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के प्रोफेसर मार्टेन अंबाम कर रहे हैं। इसके लिए एक खास तरह के ड्रोन को डिजाइन किया गया जिसकी सहायता से बादलों में इलेक्ट्रिकल चार्ज छोड़ जाते हैं और उसके बदले धरती पर बारिश की रिमझिम फुहारें गिरने लगती हैं। विज्ञान की भाषा में इस प्रक्रिया को क्लाउड-सीडिंग कहा जाता है।
‘ऑफिशियल यूएई वेदर’ के इंस्टाग्राम पेज से इस बारिश के कुछ वीडियो शेयर किए गए हैं, जिसमें सड़कों पर बारिश की झमाझम बूंदें गिरती नजर आ रही हैं और उसी में गाड़ियां दौड़ती दिख रही हैं। 50 डिग्री की इस भीषण गर्मी के तापमान से उभरने के लिए कृत्रिम बारिश कराई गयीं जिससे की इस भयानक गर्मी से राहत मिल सके। हालांकि, वीडियो देखकर लोग एकबार जरूर सोच में पड़ सकते हैं कि क्या वाकई यह वीडियो दुबई की सड़कों का है और वह भी कृत्रिम!
इस वीडियो को देखने से तो लगता है कि वैज्ञानिक जिस कृत्रिम बारिश तकनीक पर काम कर रहे हैं, उनका प्रोजेक्ट कामयाब हो चुका है। कई इलाकों में स्थित ऐसी हो गई कि बहुत ज्यादा बारिश होने के चलते येलो वॉर्निंग जारी करनी पड़ गई। यह तकनीक वहां अभी ट्रायल की स्थिति में ही है। नेशनल न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल शुरू के 6 महीनों में वहां 200 बार से ज्यादा क्लाउड सीडिंग किया गया था।
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क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी तकनीक है, जिसमें माध्यम से बादलों को जरूरत के हिसाब से इलेक्ट्रिक शॉक देकर बारिश कराई जाती है। इसमें सिल्वर आयोडाइड या ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को ड्रोन या विमानों के जरिए बादलों में फैला दिया जाता है। जिस इलाके में बारिश करवाने का टारगेट होता है, वहां हवा के उलट दिशा में इसका छिड़काव होता है। इस प्रक्रिया में बादल के छोटे-छोटे कण हवा से नमी सोख लेते हैं और फिर वही रासायनिक प्रक्रियाओं के बाद भारी बूंदों में तब्दील होकर रिमझिम बारिश कराने लगती हैं।